छह मिनट में मिला राज्यसभा टिकट 18 साल बाद 'हाथ' छोड़ 'कमल' के साथ सिंधिया

मध्यप्रदेश के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया 18 साल बाद हाथ का साथ छोड़ने के तकरीबन 27 घंटे बाद बुधवार को कमल के हो गए। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद से ही करीब 18 माह से नाराज चल रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी के करीबी रहे सिंधिया को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी की सदस्यता दिलाई।


अहम बात यह रही कि भाजपा में शामिल होते ही सिंधिया को महज छह मिनट में ही राज्यसभा का टिकट दे दिया गया।


चार बार सांसद रहे और समर्थकों में महाराज के नाम से मशहूर सिंधिया दोपहर 2:30 बजे भाजपा मुख्यालय पहुंचे। उनके साथ भाजपा नेता जफर इस्लाम थे, जो उनके भाजपा में शामिल होने के मुख्य सूत्रधार रहे हैं। 2:53 बजे सिंधिया भाजपा में शामिल हुए और 2:59 बजे पार्टी ने उन्हें राज्यसभा की उम्मीदवारी थमा दी। सिंधिया शुक्रवार को राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल करेंगे। इसी दिन मध्यप्रदेश की तीन राज्यसभा सीटों पर चुनाव के नामांकन का आखिरी दिन है।



इससे पहले मंगलवार को होली के जश्न के अवसर पर सिंधिया ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी, जो सिंधिया को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने उनके आवास पर गए। इसके बाद सिंधिया ने अपने इस्तीफे को सार्वजनिक किया था। उनके समर्थक 22 विधायकों ने भी कांग्रेस छोड़ दी, जिनमें छह मंत्री भी शामिल थे। इससे कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। 

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को नौ मार्च को लिखे इस्तीफे में सिंधिया ने कहा कि उनके लिए आगे बढ़ने का समय आ गया है, क्योंकि इस पार्टी में रहते हुए अब वह देश के लोगों की सेवा करने में अक्षम हैं। कांग्रेस के महासचिव एवं पूर्ववर्ती ग्वालियर राजघराने के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस कदम से बौखलाई कांग्रेस ने उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधि के कारण पार्टी से निकाल दिया था।


भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह का शुक्रिया कि उन्होंने हमें अपने परिवार में स्थान दिया। मेरे जीवन में दो तारीख काफी अहम रही हैं, इनमें पहला 30 सितंबर 2001 जिस दिन मैंने अपने पिता को खोया, वह जिंदगी बदलने वाला दिन है। 

दूसरी तारीख 10 मार्च 2020 जो उनकी 75वीं वर्षगांठ थी जहां मैंने जीवन में एक बड़ा निर्णय लिया है। आज मन व्यथित है और दुखी भी है। जो कांग्रेस पहले थी वह आज नहीं रही, उसके तीन मुख्य बिंदु हैं। पहला कि वास्तविकता से इनकार करना, दूसरा नई विचारधारा और तीसरा नए नेतृत्व को मान्यता नहीं मिलना।